Tvashtr समय की गाथा निरंतर नृत्य, अविरल पथ का सागर सहता है।समय की कोमल धारा में कौन सफल होता है,कौन इसके मूक स्वप्न के प्रति समर्पण करता है? ना कोई हमसफर, ना इसका कोई साथी है ,ना इसकी कमजोरी है और ना इसकी कोई जाति है,समय की स्वरमयी धारा में सहजता से बहना होगा,कुर्बानी देनी होगी, उनके जैसा बनना होगा, दूरियाँ बनी रहने दो, थोड़ा दर्द सहने दो,खुद पे काबू पाना है, तो दर्द का नथुना रहने दो,दर्द का वक्त से गहरा रिश्ता है,कभी कभी आँखों से धीरे धीरे रिस्ता है।धीरे धीरे रिसने की ये प्रक्रिया सहने दो,वक्त के साथ रहने दो, मुझे वक्त के साथ रहने दो | पीछे मुड़कर देखा तो रास्ता भटक जाओगे,पीछे चलकर आये तो रास्ता फिर ना पाओगे.चक्रीय समय के दर्द को मैंने जाना है,कोई इसके साथ चले, यही इसकी कामना है। GS Related